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‘कृपा’ बिकाऊ है! खरीद लीजिये!

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भक्त :बाबा मेरी शादी नहीं हो रही है।
बाबा :शादी में लड्डू कब से नहीं खाया ?
भक्त :कल ही खाया था ।
बाबा : कल से पहले कब खाया था ?
भक्त : परसों l
बाबा : परसों के पहले ?
भक्त : नरसो।
बाबा : दूसरों की शादी में रोज-रोज लड्डू खाओगे तो कृपा कैसे आएगी?
आज से लड्डू खाना बंद करके बर्फी खाओ, कृपा आनी शुरू हो जाएगी।
भक्त : बाबा मैं तो लड्डू के साथ बर्फी भी खाता हूँ ।
बाबा : यही तो गड़बड़ करते हो, जाओ लड्डू बंद करके सिर्फ बर्फी खाओ, बहुत जल्दी शादी हो जाएगी ।
बाबा और भक्त के बीच इस तरह के संवाद हास्यास्पद प्रतीत होते हैं, बाबा की सलाह भले ही मूर्खतापूर्ण लगे पर बाबा मूर्ख नहीं है, बाबा तो बुद्धिमान है, बहुत बुद्धिमान, मूर्ख यदि कोई है, तो वह भक्त है। जब भक्त लोग आसानी से फंस रहे हों तो उन्हें फंसा कर पैसे कमाने में क्या बुराई है? इसमें बाबा का क्या दोष है? बिचारे बाबा भी क्या करें, भारतीय व्यक्ति है ही बला का धार्मिक। वह सुबह बाबाओं के चरण चांप कर निकलता है और उनके आशीर्वादस्वरूप शाम को रिश्वत से भरी जेब लिए लौटता है। वह सुबह बाबा का आशीर्वाद लेकर सामानों में मिलावट करता है और उनके भलीभांति खपने पर प्रसाद चढ़ा बैठता है। ऐसे में पता नहीं क्यों लोग इन बाबाओ के पीछें पड़े हुए हैं? ये लोग तो पैसा ही कमा रहे हैं वह भी लीगल तरीके से। और तो और, इन बाबाओ का देश की अर्थव्यस्था में भी अच्छा योगदान है। यदि मोटा मोटा हिसाब लगाया जाये तो हम इस निष्कर्ष पर पहुचेंगे कि देश में हजारों ऐसे बाबा हैं, जिनकी संपत्ति सौ करोड़ से ऊपर हैं। कुछ की तो हजारों करोड़ है। इस तरह देश की जीडीपी में इन बाबाओ का बहुमूल्य योगदान है। कुछ बाबा स्वदेशी का प्रचार कर रहे हैं, तो कुछ ने खाने पीने की चीजों, जैसे समोसे, गोलगप्पे आदि का मार्केट बढ़ा दिया है। इनके बड़े बड़े आश्रम हैं, जिनमे हजारों सेवक काम करते हैं। इस तरह ये हजारों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। सभा, सम्मेलन, समागम के लिए लाखों रुपये खर्चा होता है, जिसका एक हिस्सा सरकार को भी जाता है । इनके विज्ञापन न्यूज़ चैनल, अख़बारों आदि में नजर आते हैं। इस तरह उनका भी भला हो जाता है।
मैं भी काफी दिन से सोच रहा था कि कैरियर ऐसा हो, जिसमें मेहनत कम लगे और करोड़ों का फायदा भी हो। लाख चिंतन करने के बाद सामने आया कि देश में सर्वश्रेष्ठ करियर बाबा बनने में है। बाबागिरी से बेहतर कुछ भी नहीं है। वाकई भारतवर्ष बाबाओं का देश है। यहाँ के कण-कण में बाबा विद्यमान हैं। सुबह से लेकर शाम तक नाना प्रकार के चैनलों पर भाँति-भांति के बाबा अवतरित होते रहते हैं। रिमोट का कोई-सा भी बटन दबाओ, परिणाम में एक नए बाबा का सृजन होता है।
हमारे देश में यह अब बड़ी इज्जत का धंधा बन गया है, या यूँ कह लीजिये कि यह भी कैरियर का एक अच्छा ऑप्सन है। इसमें आपको सम्मान के साथ पैसा भी मिलता है । अब लोगों को समझ में आ गया है कि गांधीगिरी में भलाई नहीं है, बल्कि बाबागिरी से ही तिजोरी भरी जा सकती है। गांधीगिरी से केवल आत्मा को संतुष्ट किया जा सकता है, मगर बाबागिरी में करोड़ों कमाए बगैर, मन की धनभूख शांत नहीं होती। जब से इस बात का खुलासा हुआ है कि देश का एक बड़ा बाबा महज कुछ बरसों में करोड़पति बन गया और अभी अरबों की संपत्ति का और राज खुलना बाकी है, उसके बाद तो हम जैसे लोग बाबागिरी की तिमारदारी में लगे हुए हैं। इससे पहले मेरा मानना था कि पोलिटिक्स में कैरियर सबसे अच्छा है, लेकिन वहां आजकल अन्ना जैसे लोग टांग खिचाई में लगे हुए हैं। वहां जूते पड़ने की गुंजाइश प्रबल हैं, जबकि बाबागिरी में ऐसा कोई खतरा नहीं।
ऐसे में अब बाबागिरी की राह पकड़ने की धुन मन में रोज छा रही है। हर दिन मेरा मन कचोटता है कि जब पैसा कमाने का द्वार खुला हुआ है, तो क्यों खुद को रोके बैठे हो? जाओ, कहीं भी बाबा बनकर अपना ज्ञान बांटो। यहां इतना अहसास है कि भले ही आप कम पढ़े लिखे हों, अनपढ़ हों, मगर आपको थोड़ा बहुत शास्त्र और कुछ ज्ञान की बातें जरूर पता होनी चाहिए। इसके अलावा आप में लोगों के मनोभाव का आकलन करने का गुण होना चाहिए। इसके बगैर बाबागिरी में सफलता की गारंटी नहीं है। बाबाओं की एक खासियत होती हैं, वे अपनी उम्र व शैक्षणिक योग्यता और दान के रूप में मिलने वाले धन का खुलासा नहीं करते। स्वाभाविक भी है, हम जैसे थोड़ी न हैं, एकदम फक्कड़ लिक्खास। जाहिर सी बात है, जब बाबागिरी कर रहे हैं, तो कुछ दमखम रखेंगे। बाबागिरी में कमाल दिखाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है, उंची हैसियत के लोगों का पहले विश्वास जीतो, उसके बाद तो मध्यम व निचले तबके के लोग देखते ही देखते शरणागत हो जाते हैं।
अभी बाबागिरी में करामात की चर्चा हर जुबान की शान बनी हुई है। एक अरसे से जब किसी से पूछा जाता था कि पढ़-लिखकर क्या बनोगे तो सहसा जवाब मिलता था, डॉक्टर, इंजीनियर। इधर मीडिया में बाबागिरी से कुछ ही बरसों में करोड़पति-अरबपति बनने की बात छाई है। उसके बाद बच्चा-बच्चा यही कहने लगा है कि अब तो बाबागिरी ही करनी है ? इसके लिए किसी योग्यता की जरूरत भी नहीं पड़ती। पढ़ाई के बारे में कोई पूछने वाला नहीं होता। इतने कम समय में पैसा कमाने का भला और शार्टकट रास्ता हो सकता है? बाबागिरी में चौतरफा लाभ ही लाभ है। एक तो लोग शरणागत होते हैं, पूजा करते हैं, विशेष पद से अलंकृत करते हैं और चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। इसके बाद और क्या बच जाता है ? बस, उपदेश का गुण ऐसा आना चाहिए, जिससे किसी भी तरह लोग दिग्भ्रमित हुए बगैर न रहें।
पत्रिकाओ में, फेसबुक पर कलम घिसने का क्या फायदा, कलम घिस कर मैं इतने पैसे नहीं कमा सकता। इसीलिए पूरा मन ही बना लिया है कि बाबागिरी का कमाल हर हाल में दिखाना ही है। भले ही इसके लिए मुझे अपना चोला ही बदलना पड़े, क्योंकि आज के युग में इतना तो समझ में आ ही गया है कि जब तक आप लखपति, करोड़पति, अरबपति नहीं हैं, तब तक आप कुछ नहीं हैं।
कृपा तो बिकाऊ है, पहले लोग भगवान से कृपा खरीदते थे पर अब बाबाओं से खरीद रहे हैं। …इसीलिए इस मार्केट में जल्दी मैं भी अपनी दुकान लगाने वाला हूँ ….कृपा बिकाऊ है, खरीद लीजिये न।
Dileep kumar mishra on marketpreview

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